चमक रहा है सूरज पर कंपकंपी भी आ रही है ,
रात हो चुकी है पर कोयल अभी भी गा रही है ,
नहीं बरस रहे मेघा बस फिज़ा ही भिगा रही है ,
ज़िन्दगी फिर भी चली जा रही है ।।
आसमाँ साफ है बस चाँदनी ही छुपी जा रही है ,
ख़ामोश है समुन्दर पर तूफान की खबर भी आ रही है ,
बर्फ गिर रही है पर गर्मी भी सता रही है ,
ज़िन्दगी फिर भी चली जा रही है ।।
कांटो पर बैठी है मधुमक्खी पर शहद भी बना रही है ,
पहाड़ पर चड़ने का जज़बा है पर उचाई भी डरा रही है ,
रेखाएँ तो साफ है पर मुक्कदर से मात खा रही है ,
ज़िन्दगी फिर भी चली जा रही है ।।
शमां रोशन है पर राह नज़र नहीं आ रही है ,
लबो पर हँसी है पर सज़ा दिये जा रही है ,
धड़कन साथ है पर साँसे टूटे जा रही है ,
ज़िन्दगी फिर भी चली जा रही है ।।
No comments:
Post a Comment